काश !
मैं एक पंछी होता ,
दूर आसमान में भरता उड़ान........
ठहर के किसी बादल पे
लेता
थोडा पानी उधार
आसमान में
उड़ते
' कपास के बाग़ ' का
मैं
अकेला माली होता
काश !
मैं....................
एक पंछी होता ,
पर
ढले शाम तो
ज़मीं पे ही आना पड़ता
काश !
मैं एक कलम होता,
शब्दों की छड़ी , से
रिसकर
कागज़ पे फैला हुआ ,
नीले रंग का .....
लेखक का बहता खून होता...
फिर क्यूँ न मैं
किसी के मन का
घुमड़ता ख्वाब होता
काश !
मैं........
एक कलम होता,
काश !
मैं एक आईना होता
हर शख्स को
आईने में छिपी
ज़िन्दगी की घड़ी
उसके
बदलते चेहरे पे दिखाता
फिर चाहे मेरी फितरत में नहीं
की उसे उसकी नीयत
भी दिखाता
काश !
मैं.....
एक आईना होता ,
...पर अफ़सोस नहीं की इंसान हूँ ...
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